Tuesday, 28 July 2015

विश्वास बहुत है

यदि जीवन के झंझावातों से, हो त्रसित मनोबल  लगे टूटने 
मन  की  क्यारी में  कुभाव के अंकुर  अनगिन   लगें  फूटने 
यदि ऊपर उठती हुयी सफलताओं की चंग अचानक नीचे आये   
तो  रखना  उस पर विश्वास बहुत है जो जीवन की नाव चलाये  

वो कहता, मैं नहीं किसी के पाप पुण्य का लेखा जोखा रखता हूँ 
और न ही उस पर आधारित, सुख -दुःख  का वितरण करता हूँ   
पर निश्चय हूँ  व्याप्त जगत में , हूँ हर अवयव  में हर  कण में 
मैं हूँ, इतना विश्वास बहुत है, जो धीरज  दे कुसमय के क्षण में 


मैं हूँ प्रकृति, रचयिता जग का, पालक जन जन का, संहारक  हूँ 
मैं हूँ संचालक सकल सृष्टि का,  सर्व शक्तिमय हित  कारक हूँ  
जिनको  मुझ पर  विश्वास  बहुत है, जो  मुझको  पास बुलाते हैं 
मैं भी उन्हें  ढूंढता  प्रतिपल अवकंपित मुझको वो कर जाते हैं 

 श्रीप्रकाश शुक्ल -

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