Sunday, 19 July 2015

अपने अपने शून्य

रवि  चन्द्र पृथ्वी आदि  गृह, रूप जो  करते निरूपण
ल बिंदु, तारक, ओस  के हैं  रूप जिसका अनुकरण
जो शून्य, अनंत, अनादि है, विविधकार जिसका रूप हैं 
हर कण में  समाया सृष्टि के वो आत्म,ब्रह्मस्वरुप  है 

जो अपने अपने शून्य में खो, साधना पथ में बिचरते  
ध्यान केंद्रित कर श्वसन पर भाव गति निर्बाध करते    
शांति  सागर सी  हिलोरें  मन में आ कर पौढ़  जातीं  
भौतिक  जगत से दूर कर, ले  पूर्णता की  ओर जातीं 

शून्य उद्गम ज्योति का, उर में समाये तिमिर काला 
शून्य सृष्टि का सृजक, शून्य घातक ,शून्य रखवाला   
 धन्य  वो सार्थक विचारक  जो  शून्य लाये खोजकर 
विज्ञान के इक सूत्र में बाँधा जगत  विषमतायें तोड़कर 

 श्रीप्रकाश शुक्ल 

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