Sunday 19 July 2015

इसलिये आओ  ह्रदय में 

कुंतलों की लटक तेरी, जैसे लता तरु को चपेटे 
भावनाएं इतनी सुवासित, जैसे हों चन्दन लपेटे 
रूप की सज्जा से बढ़कर आतंरिक सौंदर्य है जो 
संसार को चंगुल में बांधे नारि तेरी शक्ति है वो 

छाँह -चितवन में तेरी यदि, रह सकूँ पर्यन्त जीवन 
तो अमरता प्राप्त कर लूँ, पा सके जिसको न सुरगण 
यदि गुलाबी पँखुडीं द्वि, छू लें पिपासित अधर मेरे  
तो मैं पालूं दिव्य सुख वो, जिसको तरसते सुर घनेरे  

भाल की विंदिया तेरी,  दे रही सम्मोहक निमंत्रण  
सौंदर्य की प्रतिमूर्ति तू, संभव नहीं आसंग निवारण 
इसलिये आओ  ह्रदय में, सुमुखि बस जाओ यहाँ 
आवास इससे और निर्मल मिल सकेगा फिर कहाँ

श्रीप्रकाश शुक्ल   

No comments:

Post a Comment