Sunday 19 July 2015

मन की तराजू पर तौलो

उद्बोधित हर भाव ह्रदय का मन की तराजू पर तौलो
कोई सु मन न हो तापित निश्चित कर अधरों को खोलो

चिकनी चुपड़ी बातों से संभव है विश्वास जीत लो
पर सच्ची जीत चाहते हो तो मन का मैल खखोलो  


कितनी मालाएं पहन चुके हो कितनी दूरी पार कर चुके
पर यात्रा सफल बनानी है तो साथ विपन्नों के हो लो

सर्व शक्तियां पास तुम्हारे क्यों रोते हो बंधु अकारण
प्रभु पर कर विश्वास, भार जीवन का हंस हंस ढ़ो लो

सत्य अगर कड़वा है तो औषधि समझ घटाघट पी लो
तनिक यातना अच्छी है, तुलना में जीवन भर रो लो

अंतस में बैठा  साथी  "श्री " प्रतिपल राह दिखाता है
यदि वांछित मंजिल पानी है, निर्देशित पथ से मत डोलो

श्रीप्रकाश शुक्ल 

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