Sunday 19 July 2015

इस होली परआज नए कुछ रंग 

भदरंग निमिष जीते जीते, जीवन हुआ अपंग 
आओ खेलें इस होली परआज नए कुछ रंग 

वो जीवन  भी क्या जीवन है जिसमें हर्षोल्लास नहीं 
वो मौसम भी क्या मौसम है जिसमें हो मधुमास नहीं
प्रकृति नटी की चूनर में  नित  रचती सतरंगी  क्यारी 
भारत ऐसी भूमि कि जिसमें त्योहारों की छवि न्यारी 

आओ अब फिर से अपनायें भरत मिलन के चर्चित ढंग 
दिल में  हो भरा प्रेम सागर, स्वस्ति भावनाएं हों संग 
 
जब से  वन्दन की चाहत का मन में प्रादुर्भाव हुआ है 
तब से कोमल भावों ने जन मानस को कम ही छुआ है  
रहे निभाते जग की रीतें, पर तार ह्रदय के जुड़ न पाये  
रस रंग रहे जीवन के फीके तम प्रलोभ के मन को भाये  

आओ निरंहकारिता के रंग डूबें,कर पूर्वाग्रह भंग    
आओ खेलें इस होली परआज नए कुछ रंग 

श्रीप्रकाश शुक्ल 

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