Sunday 19 July 2015

सन्दर्भ : मनीपुर में १८ सेना के जवान मारे जाने के सन्दर्भ में यह रचना सभी सैनिकों को सम्बोधित है


अरे उठो वीरो क्यों चुप हो 

नहीं कुछ फर्क है दिखता हमें  भीरुता और शराफत में
मतलब क्या चुप हो बैठें हम नादानी और  हिमाकत में 
क्षमा उसी को शोभा देती जो सच में ज़हर उगल सकता है 
बदला निपात का हो  विघात, तो माहौल  बदल सकता है  

अरे उठो वीरो क्यों चुप हो किसकी तुम्हें प्रतीक्षा अब है 
अठारह सह्स्र जब  चीख उठें, शूरों की  सार्थकता तब है 
घर घर में घुस ढूढ़ निकालो जिसने ऐसा अंजाम  दिया  
सारे जग को आज बता दो, किसने माँ  का  दूध पिया  

नहीं तनिक भी आवश्यक हम जग के आगे रोना रोयें 
प्रत्युत्तर ऐसा सटीक हो सदियों  तक हम  चैन से सोयें  
यदि देश पडोसी कोई भी दे रहा समर्थन इस जघन्य को 
तो ऐसा पाठ पढ़ाओ उसको फिर न छेड़े किसी अन्य को 

याद करो चाडक्य नीति जो कुश की धृष्टता मिटाने को 
देती सलाह संकल्पित हो मौलिक आलंबन निबटाने को 
आज ज़रूरी है हम इनकी अति विस्तारित जड़ें मिटायें 
ऐसे दुः साहस पूर्ण कृत्य जिस से अपना सर न उठायें  
 
श्रीप्रकाश शुक्ल 
बोस्टन 
५ जून २०१५ 

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