आँखों की भाषा
नगर वासुरा ने जब पूछा, वो श्यामल से कौन तुम्हारे
घूँघट तिरछा कर सीता ने बता दिया सब नयन इशारे
राधा की चितवन कान्हाँ को प्रतिपल करती रही विभोर
वो बरबस चित्त चुरानेवाला, जग में कहलाया चितचोर
आँखों की भाषा अद्भुत है जो कि मन का भेद खोलती
इसे समझने में प्रवीण जो बुद्धि उसकी सही तौलती
जैसे मधुरिम, शालीन, सुभी, शब्दावलि रुचिकर होती है
बैसे ही आँखों की मटकन हृद में अनुभूति सुखद बोती है
शकुंतला थी सुधि में खोई, आ पंहुचे जब ऋषि दुर्वाषा
हुयी प्रकम्पित भय से अंतस ,पढ़कर आँखों की भाषा
अश्रुपूर्ण आँखें बोली थीं,, क्षमा करें मुनि, हों अनुकूल
मुनि बोले जिसकी सुधि बैठी, वही तुझे जायेगा भूल
जब भी हृद सागर में उमड़ी संप्रेषण की अमिट पिपासा
सब से मुखरित रही सदा ही आँखों से आँखों की भाषा
शब्दों में सामर्थ कहाँ मन की अभिलाष प्रकट कर पाते
आँखों ने वो कहा सहज ही शब्द कभी न जो कह पाते
श्रीप्रकाश शुक्ल
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