Wednesday 13 January 2016

शहर की उस वीरान गली

शहर की उस वीरान गली में,
सूरज के पग थक जाते हैं जब 
संतप्त ह्रदय की प्यास बुझाने  
पंछी आ वहाँ बैठ जाते हैं  तब  

बैसे तो शहर विशद तरुवर है   
हर शाख बसेरा प्रणयी विहगों का 
पर प्रेम गीत प्रतिबन्धित  है 
हर निमिष त्रास शंकालु दृगों का 

झोंका समीर का ले आता है  
खुशबू गाँवों की रोज शाम 
वो वीरान गली बन जाती है
बिछड़ा सा उनका सुखद धाम  

क्षण भर को पा जाते हैं वो 
पुरसकून, नीरव  इकांत
प्यार परिंदों, के जीवन की 
वीरान गली हरती है क्लांति 

श्रीप्रकाश शुक्ल 


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