दीप दीपावली के सजे
दीप दीपावली के सजे हैं कहाँ, झालरें दिख रहीं हैं सभी चीन की
भारत की रज से बने दीप सब, भर रहे शिशकियाँ हैं, इक दीन सी
भारत की रज से बने दीप सब, भर रहे शिशकियाँ हैं, इक दीन सी
उस रज को हैं आज भूले हुए, जिसमें मीरा के गीतों की गुंजन भरी
महक जिसके तन में है श्रीवास सी, वो तड़फती दिखे एक मीन सी
महक जिसके तन में है श्रीवास सी, वो तड़फती दिखे एक मीन सी
बत्तियाँ मोम की कुछ हैं बाज़ार में, जो कि दिखतीं हैं अनुरूप रति रूप की
बाद जलने के बदबू प्रसारित करें, सारी महफ़िल ही कर दें वो गमगीन सी
बाद जलने के बदबू प्रसारित करें, सारी महफ़िल ही कर दें वो गमगीन सी
आओ संकल्प लें, ऐसा होने न दें, जो भी दीपक जले, हो सृजित देश का
हो निसृत राग दीपक, सदा कंठ से, हो ध्वनित रागनी एक मधुर बीन सी
हो निसृत राग दीपक, सदा कंठ से, हो ध्वनित रागनी एक मधुर बीन सी
खुशियाँ मनाना है अन्वर्थ "श्री", जब पंक्ति के अन्त के दीप जलते रहें
आत्म सम्मान भर सब आगे बढ़ें, हिय पालित न हो भावना हींन सी
आत्म सम्मान भर सब आगे बढ़ें, हिय पालित न हो भावना हींन सी
श्रीप्रकाश शुक्ल
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