Wednesday 29 August 2018

जब जब नीड़ बनाये हमनेंं

जब जब नीड़ बनाये हमनेंं, पास बसे पंछी 
मुस्काये ।
बोले, मोह जाल मेंं फस क्यों  फिरते हो भरमाये  ।

कोई पखेरू इस युग मेंं, जिसको मिट्टी से प्यार नहीं है ।
नहीं टिकेगा इन नीड़ों मेंं चाहे कोई लाख मनाये।

लुप्त हुये वो दिन अतीत के, मातृभूमि ही जब 
कवि मेंंदीरत्ता  का शुभ आगमन 

खनकाने लग पड़ी दिशाएँ अपनी रतनजड़ित पायलियांं,
बैरानक्रीक  की पावन लहरों से हुये अनेकों मंत्र उच्चरित 
काले पहाड़ के शिखरों से लौटी गूंज यज्ञ शंखो के स्वर ले ,
अभिनंदित हैं सभी, हुुये कवि  मेंंदीरत्ता आज अवतरित
मधु, रेनु हैं परम अनुुग्रहित, पाकर ऐसा उपहार ईश से 
जगदीश उमा आनन्दित हो भरते कवि की झोली अशीष से 
मीरा सोच रही विस्मित हो ,भाई प्यारा पाकर गुड्डे सा
रक्षावन्धन के अवसर पर, लाया कौन खिलौना ऐसा

कनिका की आखों में चमकी हैं ,अनगिन हीरक कनियां
रोहित को दायां हाथ मिला है ,एक अनूठे नए रूप में
यही कामना है हम सब की, रहे पूर्णिमा, घिरी निशा में 
और दिवस जीवन के पथ के रहेंं चमकते खिली धूप में

शुभ कामनाओं सहित 
 गीता -श्रीप्रकाश 
एवं समस्त परिवार

Shriprakash Shukla wgcdrsps@gmail.

सब कुछ थी
अब तो ऐशो आराम की दुनियां हर पंछी का जी ललचाये 

इस भ्रमित मानसिकता का कारण अपनी  शिक्षा पद्धति ही है 
जिसमें विदेश के सुख साधन के हमने बढ़ चढ़ स्वप्न दिखाये 

है नितांत आवश्यक अब, हम समाज मेंं जाग्रति लायेंं
ऐसी प्रारम्भिक शिक्षा  दें, जो देश प्रेम की अलख जगाये।

जिस उपबन मेंं जन्म लिया और जहाँ चुगे 
खाने के दाने
वो शिक्षा जो इस उपबन के संरक्षण की सपथ दिलाये ।

अपना पेट पालने को तो सक्षम है हर अदना सा प्राणी
पर हमें चाहिए ऐसी शिक्षा जो पर हित का पाठ पढ़ाये 

एक बार यदि सफल हुये हम देश भक्ति उपजाने मेंं
तो स्वर्ण महल बन जायेंंगे "श्री" जो भी हमने नीड़ बनाये ।

श्रीप्रकाश शुक्ल



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