कलम, आज उनकी जय बोल
कंटकाकीर्ण पथ पर चलकर
अडिग सत्य हित मेंं रहकर
जो छद्म मुखौटे रहे खोल
कलम, आज उनकी जय बोल
निर्धनता के आंचल मेंं पल
तूंफा से न हुये विकल
हर सोच रही जिनकी अनमोल
कलम, आज उनकी जय बोल
जो चट्टानों से टकराते हैं
निर्भीक मना सब कह जाते हैं
शब्दों को गढते तोल तोल
कलम, आज उनकी जय बोल
जीवन संवेदन की मूर्ति है
सदकर्मो से भरी की्र्ति है
जो नहीं बजाते व्यर्थं ढोल
कलम, आज उनकी जय बोल
सहिष्णुता जिनका आभूषण
पर हित जाता जिनका हर क्षण
रसना रही प्रीति रस घोल
कलम, आज उनकी जय बोल
श्रीप्रकाश शुक्ल
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