Wednesday 29 August 2018

मैं इस मंजिल पर 

मैं इस मंजिल पर 
 पूर्ण तृप्त हूं ।

मां का बुना पहनकर स्वेटर 
लाद पीठ पर ज्ञान का बस्ता
अचार परांठा साथ बांधकर
मीलों चला वो दुर्गम रस्ता
वाह, गुरू जी का क्या कहना
द्रोण सरीखे पूज्यमना
मैं ऐसे वचपन से
पूर्ण तृप्त हूं

काँँलेज मेंं प्रवेश पाकर
छात्रबृत्ति पर निर्भर रहकर
विज्ञान गणित पर जोर लगाकर
मानक सहज नवीन बनाकर
भौतिकी प्रवक्ता बनकर आया
जितना सीखा सभी पढाया
मैं ऐसी सीढी पर चढ़
पूर्ण तृप्त हूँ 

आगे पड़ा देश पर संकट
घर घुस आये चीनी मर्कट
हमने चुनी भारतीय सेना
मीठे थे वो चने चवेना
नापाक पाक से दो दो हाथ
नश्वर जीवन हुआ सनाथ
मैं इन निर्णायक निमिषों से  
पूर्ण तृप्त हूं ।

अब तो उम्र ढल रही है 
नैया ठीक चल रही है 
सन्तति ने निज फर्ज निभाया
जो मैंने चाहा, कर दिखलाया
सन्तोष और संवेदन है अब
आभार और आराधन है अब
मैं इस मंजिल पर जहाँ खड़ा हूँ
सम्पूर्ण तृप्त हूँ ।

श्रीप्रकाश शुक्ल

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