काली सूरत धब्बे वाली
प्यारी सी मां, काली सूरत धब्बे वाली ओढ़ चुनरिया चली कहाँ
राह जोहते, कब से बैठे, बांंध टक टकी , तेरे सारे भक्त यहाँ
अंतस हर्षाता, रूह पा जाती, जग की सब से शीतल मधुर ठहाँ
दुष्ट संहारे, भक्त उबारे कितने ही तू ने निष्काम भाव से
जो पापों मे फंसा, दग्ध हो रोया, पा गया शांति तेरे कदमों की छहाँ
सिंहवाहिनी, शक्तिशालिनी, कष्टहारिणी भव भय भंजनि तू है
धरती पावन होती,धान्य उगाती,पग रज पड जाये तेरी जहाँ ।
नवरूपों वाली, बहुफल दायी, तन मन धन सुख दायी है तू "श्री "
भक्त तेरे, निष्कपट भाव से, जहाँ बुलाते, जाती है तू पहुंच वहाँ ।
श्रीप्रकाश शुक्ल

No comments:
Post a Comment