Wednesday 29 August 2018

वही बीता हुआ पल 

चैन से सोने न देता बस वही बीता हुआ कल 
उलझनें वो ही सुझाता था न कोई जिनका  हल 

जिंदगी थी राह पर, पर उलझनें कुछ पाल लीं 
शूल सी चुभतीं रहीं, पर जिन्हें था छोडना मुश्किल 

आज कितने वर्ष बीते पर न कल ने साथ छोड़ा 
अश्रु जल से सिक्त कर, हर ख़ुशी करता विफल   

औचित्य क्या डूबे हुए हम, आज भी बीते क्षणों में 
क्यों न गुजरे कल को भूलें और करें अगला सफल 

बुद्धि का संबल लिये  विगत को जो भूलता "श्री"  
वो मनीषी स्वयं और सारा जगत करता विमल 

श्रीप्रकाश शुक्ल 
 
 

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