खिली धूप की चादर
बर्फीले पहाड पर फैली, खिली धूप की चादर
लगता जैसे सिहर रहा हो भरा दूध का सागर
वर्षा आई कुछ दिन ठहरी साथ निभाकर चली गयी ।
अब गुजरे एहसास रुलाते बार बार सुधियों में आकर
कोहरा ओढे ठिठुर रहे हैं, ठूंठ हुये तरुवर सारे
मानो ऋषि मुनि मूक खडे हैं इष्टदेव का ध्यान लगाकर
यद्यपि तापमान बाहर का मन में उदासी भरता है
पर दिनकर की उष्ण रस्मियां हर्षित करतीं छितराकर
हिम बरसे चाहे कितना भी, या फिर झंझाबात दुसह हों
पर अमरीका के वासी करते "श्री" अपना सारा काम बराबर
श्रीप्रकाश शुक्ल
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