Wednesday, 27 January 2021

 भले ही साथ मत 



भले ही साथ मत देना,न उकसाना अबोधों  को   
न रखना मोड़कर बांधे, कभी सुकुमार पोधों को 
एक दिन होकर बड़े ये, जिन्दगी का मर्म समझेंगे 
घिनौनी सोच से उपजे, तुम्हारे कर्म समझेंगे 


बंधा पानी जब खुलता है, तो चट्टानें निगलता है 
कुर दबे अरमान का ज्वालामुखी सम उभरता है 
हम चल पड़े संकल्प ले, बागवां अपना सजाने को 
अरे क्यों कर रहे कलुषित हमारे आशियाने को 
मेरी गलियों की मिट्टी से, तुम्हारी सांस रुकती है 
खिले हर फूल की खुशबू, तुम्हारे दिल में चुभती है 
मगर जो ठान बैठे हैं,वो भागीरथ इरादा है 
विषैले सांप कुचले जायेंगे,ये मेरा वादा है 
मारते हम न चीटी तक, पिलाते दूध व्यालों को 
हैं करते माफ हम शिशुपाल जैसे शतक पापों को 
सबको चलेंं हम साथ ले,  विश्वास देकर, राह अपनी 
पर नहीं भाती है "श्री", कोई   कुटिलता पूर्ण करनी 

श्रीप्रकाश शुक्ल 

5 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २९ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. मेरी गलियों की मिट्टी से, तुम्हारी सांस रुकती है
    खिले हर फूल की खुशबू,तुम्हारे दिल में चुभती है
    मगर जो ठान बैठे हैं, वो भागीरथ इरादा है
    विषैले सांप कुचले जायेंगे, ये मेरा वादा है
    आपने देश की वर्त्तमान परिस्थितियों को बिना किसी का नाम लिए शब्द-चित्रों में उकेर कर धर दिया है .. सादर नमन आपको ...
    तथाकथित किसानों के सोशल मीडिया वाले तथाकथित हितैषियों को तो वैसे कतई शर्म नहीं आयी होगी, पर उस दिन 26.01.2021 को, गणतंत्र दिवस के दिन, दिल्ली में घटे घटनाक्रम से , अगर मरणोपरान्त आत्मा का अस्तित्व होता होगा, तो कम-से-कम सिखों के दसों गुरुओं और भगत सिंह जी की आत्माएँ जहाँ कहीं भी होंगीं .. जरूर शर्मसार हुई होंगीं .. शायद ...

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  3. प्रभावी एवं सशक्त सृजन ।

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