भले ही साथ मत
भले ही साथ मत देना,न उकसाना अबोधों कोन रखना मोड़कर बांधे, कभी सुकुमार पोधों कोएक दिन होकर बड़े ये, जिन्दगी का मर्म समझेंगेघिनौनी सोच से उपजे, तुम्हारे कर्म समझेंगेबंधा पानी जब खुलता है, तो चट्टानें निगलता हैकुर दबे अरमान का ज्वालामुखी सम उभरता हैहम चल पड़े संकल्प ले, बागवां अपना सजाने कोअरे क्यों कर रहे कलुषित हमारे आशियाने को
मेरी गलियों की मिट्टी से, तुम्हारी सांस रुकती हैखिले हर फूल की खुशबू, तुम्हारे दिल में चुभती हैमगर जो ठान बैठे हैं,वो भागीरथ इरादा हैविषैले सांप कुचले जायेंगे,ये मेरा वादा है
मारते हम न चीटी तक, पिलाते दूध व्यालों कोहैं करते माफ हम शिशुपाल जैसे शतक पापों कोसबको चलेंं हम साथ ले, विश्वास देकर, राह अपनीपर नहीं भाती है "श्री", कोई कुटिलता पूर्ण करनी
श्रीप्रकाश शुक्ल
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २९ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
मेरी गलियों की मिट्टी से, तुम्हारी सांस रुकती है
ReplyDeleteखिले हर फूल की खुशबू,तुम्हारे दिल में चुभती है
मगर जो ठान बैठे हैं, वो भागीरथ इरादा है
विषैले सांप कुचले जायेंगे, ये मेरा वादा है
आपने देश की वर्त्तमान परिस्थितियों को बिना किसी का नाम लिए शब्द-चित्रों में उकेर कर धर दिया है .. सादर नमन आपको ...
तथाकथित किसानों के सोशल मीडिया वाले तथाकथित हितैषियों को तो वैसे कतई शर्म नहीं आयी होगी, पर उस दिन 26.01.2021 को, गणतंत्र दिवस के दिन, दिल्ली में घटे घटनाक्रम से , अगर मरणोपरान्त आत्मा का अस्तित्व होता होगा, तो कम-से-कम सिखों के दसों गुरुओं और भगत सिंह जी की आत्माएँ जहाँ कहीं भी होंगीं .. जरूर शर्मसार हुई होंगीं .. शायद ...
वाह!लाजवाब 👌
ReplyDeleteप्रभावी एवं सशक्त सृजन ।
ReplyDeleteसुन्दर सृजन।
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