चाहे दिनकर का उर्वशी काव्य हो या बाल्मीकि की रामायण ।
बचन निभाये गये पूर्णतः यदि मिला न कोई विशिष्ट कारण ।।
यहाँ आपने स्वेच्छा से नियमों की
रूह उधेड़ी है ।
और बताये गये अनियम का किया न कोई पू्र्ण निवारण।।
इस कारण प्रोटेस्ट रूप में हमने ये योजना बनाई है ।
रचना तो हम सृजन करेंगे, पर नहीं
करेंगे नामकरण ।।
जीवन मेंं व्यस्तता सभी को, पर कुछ जन हित आवश्यक है ।
इसका दायित्व उन्हीं पर जाता जो बन सकते हैं उदाहरण ।।
आवश्यक था मारुतिनन्दन को भी शौर्य शक्ति बतलाई जाये ।
इसीलिए "श्री"" करते रहिये, ई कविता का नित पारायण ।।
श्रीप्रकाश शुक्ल
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