केवल तेरे ही अधरों पर
आदेश हुआ है लिखूं गीत मैं केवल तेरे ही अधरों पर ।
इक आराधक का मान और क्या हो सकता है इससे बढकर ।।
तेरे अधरों की लाली से प्रकृति नटी ने लालिमा चुरायी,
बिखरायी वो गुलाब की कलियों में और ऊषा की किरणों पर
तेरे अधरों के स्पर्श मात्र से मुखर हुयी मुरली की मृदु ध्वनि,
मंत्र मुग्ध हो गये जिसे सुन, जगती के पशु पक्षी और नारी नर
तेरे अधरों से प्रस्फुटित हुया जीवन यापन का अद्भुत दर्शन,
जिसका लेकर आधार जगत के मूल्यों ने पाये नवीन स्वर
चाहे पावन पथ हो प्रेम मार्ग का या वीरोचित शौर्य कर्म का,
"श्री" ने पायी असीम अनुकम्पा संरक्षक रहे सदा मुरलीधर
श्रीप्रकाश शुक्ल
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