आशाओं के नये सूर्य
सतत प्रतीक्षित आशाओं के नये सूर्य
उगते दिखते हैं
लगता है घोर तिमिर ड़ूबे अवसाद भरे पल छटते दिखते हैं ंं
एक लहर फैली है, जिसमेँ भरी सुरभि सदभाव की है
निष्ठा सै प्रेरित, शुचि से सिंचित, श्रम सुमन नये खिलते दिखते हैं
भावना एक ही गूंज रही, ऋषि पुत्रो उठो, स्वयं को जानो
तुम दधीचि के वंशज हो, शक्ति अपरिमित पहचानो
अपना पेट पालने में तो सक्षम होता एक श्वान भी
जो मिटते रहे सतत औरों हित, उनमेंं ंं अपनी गिनती मानो
जब केवल रवि अम्बर में सारे जग को प्रकाश दे सकता है
एक सुधाकर शीतल किरणों से जग की पीड़ा ले सकता है
हैं आप एक सै बत्तिस करोड़, हर में असंख्य सुविचार भरे
इतना विशाल समुदाय सृष्टि को "श्री" सब कुछ वांछित दे सकता है
श्रीप्रकाश शुक्ल
No comments:
Post a Comment