नदी किनारे घूमे
शिव रात्रि के महा पर्व पर सुरसरि से जल लाना था
देवादिदेव श्री महादेव के चरणों में, जिसे चढ़ाना था
नदी किनारे घूमे हम, पर मिल न सका स्थान कोई
जहां से चलकर जल प्रवाह तक संभव हो पाता जाना ।
पार्श्व खड़े केवट ने मेरे मन की उलझन पहचानी
बोला चलो नाव पर मेरी मुझको भी कुछ पुण्य कमाना
सुरसरि के चारों ओर खिली थी शान्त सरल निर्मला चांदनी
नभ के तारक दल प्रतिबिम्बित हो
जल में भरते दृश्य सुहाना
अवर्णनीय रही तन्वंगी गंगा और केवट की तरणि सुगड़
इक पावन दिन पर ऐसा सुयोग "श्री" संभव होगा नहीं भुलाना
श्रीप्रकाश शुक्ल
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