Tuesday 21 December 2021

 नदी किनारे घूमे

शिव रात्रि के महा पर्व पर सुरसरि से जल लाना था
देवादिदेव श्री महादेव के चरणों में, जिसे चढ़ाना था
नदी किनारे घूमे हम, पर मिल न सका स्थान कोई
जहां से चलकर जल प्रवाह तक संभव हो पाता जाना ।
पार्श्व खड़े केवट ने मेरे मन की उलझन पहचानी
बोला चलो नाव पर मेरी मुझको भी कुछ पुण्य कमाना
सुरसरि के चारों ओर खिली थी शान्त सरल निर्मला चांदनी
नभ के तारक दल प्रतिबिम्बित हो
जल में भरते दृश्य सुहाना
अवर्णनीय रही तन्वंगी गंगा और केवट की तरणि सुगड़
इक पावन दिन पर ऐसा सुयोग "श्री" संभव होगा नहीं भुलाना
श्रीप्रकाश शुक्ल

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