धन्य हमारे ऋषि मुनिवर, सुधियाँ जिनकीं आतीं रह रह के
छोड़ी ऐसी सुरभि कृतित्व की, जिससे श्वास जन्म भर महके
जीवन की उलझी राहों में, सहज नहीं सदमार्ग ढ़ूढ़ना
दिया व्यास जीवन दर्शन, पढ़कर मानव मन कभी न बहके
परमार्थ त्याग की सीमा टूटी, जब दधीचि तन दान किया,
अस्थियाँ काम आयीं जिनकीं, दुष्ट विनाशक आयुध बनके
केवल ऋषि ही नहीं, मनीषियों ने जन हिताय सर्वस्व दिया
कल्याण भावना सर्वोच्च रही, संकल्प निभाया दुख सहके
कल्पनातीत है सोच हमारी, उर में उगती भावना मदद की
कामना यही रहती "श्री" मन में, सब रहें सुखी, जीवन चहके
श्रीप्रकाश शुक्ल
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