Saturday, 15 August 2020

 ख़ालीपन निशब्द घरों मेंं


युद्ध की भयावहता 
से परिचित सभी आज, युद्ध किसी वाद का निदान नहीं लाता है 
सम्पत्ति का ह्रास तो होता ही है उभय पक्ष, प्राणों का हतन असहनीय हो जाता है  

कुटिल पड़ोसी जब सहमति जन्य सम्मति त्याग, सीमा पर अपना विस्तार फैलाने लगे 
शान्ति का पूजक भी राष्ट्र हित में तब, दो दो हाथ करने को वाध्य हो जाता है  
 
त्राहि त्राहि गूंजने लगती है चारौ ओर, भर जाता है खालीपन निशब्द घरों में, 
होकर सशंकित सम्पूर्ण विश्व एक साथ, स्वयं की सुरक्षा आंकलन में जुड़ जाता है 

चाहता न कोई कभी, दूसरों के  मसले में दख़ल दे, बिना विशेष कारण के,
पर सागर में उमड़ती घूमती भंवर की भांति, शनै शनै उसमेंं फंसता चला जाता है  

भारत भी आ पहुंचा आज, ऐसी ही स्थिति में, धृष्ट पड़ोसी के छल भरे मंतव्य से 
विस्तारवादी धारणा से ग्रसित जो, 
सीमा पै आंखें गढ़ा, बंदर भभकी दिखाता है 

शिशुपाल जैसे अनिष्ट कार्य सौ कर चुका शत्रु, पर हम अभी भी धैर्य  धारण करे हैं "श्री," 
चुक गये उपाय समझाने बुझाने के, उपचार चोट किए बिना नज़र नहीं आता है ।

श्रीप्रकाश शुक्ल

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