Saturday, 15 August 2020

  घर बापसी


चारौ ओर भरा था ख़ालीपन निशब्द घरों में 
जब से मजदूर गांव छोड़ आये थे शहरों  में 

हतप्रभ बूढ़े बापू रोज काम पर जाते थे
पाते थे खाने भर दाने शक्ति नहीं थी पैरोंं में

परस रहा था शून्य हर गली धमा चौकडी गायब थी 
इधर बन्द थी किलकारी कौने के छोटे कमरों मेंं

बारह घंटे जुटे नगर में फुरसत नहीं सांस लेने की
सम्भव नहीं निकल पाना था घर  बाहर थे पहरों  में

फिर जब फैला कहर विश्व में समय बना रहबर
हुयी बापिसी घर लौटे मात पिता के चरणों में

गलियां चौपालें ताल तलैय्या गाय भैंस मठिया,
झूम उठे सब के सब "श्री "ड़ूब खुशी की लहरों में

 श्रीप्रकाश शुक्ल


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