Saturday, 15 August 2020

 एक नवगीत


कहाँ आगये चलते चलते 
और कहाँ था जाना 
भूल गए ख़ुशबू धरती की,
चिड़ियों का गाना  

चाहा था बाग बनाऊं,
प्रकृति नटी के आंगन
बहकें जहाँ मधुर कलियाँ,
सुन तरुओं की धड़कन 
पुलकित होगा हृदय निरख
चिड़ियों का इठलाना

चाहा था मलय पवन आकर 
कर दे प्रमुदित मन 
उपजे जीवन कलि में
इच्छा, छू ले जो जन जन 
कर गये विदेश पलायन
टूटा ताना बाना 

श्रीप्रकाश शुक्ल

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