एक नवगीत
कहाँ आगये चलते चलते
और कहाँ था जाना
भूल गए ख़ुशबू धरती की,
चिड़ियों का गाना
चाहा था बाग बनाऊं,
प्रकृति नटी के आंगन
बहकें जहाँ मधुर कलियाँ,
सुन तरुओं की धड़कन
पुलकित होगा हृदय निरख
चिड़ियों का इठलाना
चाहा था मलय पवन आकर
कर दे प्रमुदित मन
उपजे जीवन कलि में
इच्छा, छू ले जो जन जन
कर गये विदेश पलायन
टूटा ताना बाना
श्रीप्रकाश शुक्ल
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