जो मेरा संस्कार बन गई
जो मेरा संस्कार बन गई, है बात वो दादी नानी की
भूखा रहना पड़े मगर, भरपूर अतिथि मेहमानी की
छोटों को थपकियाँ प्यार की,अग्रज को शीश नवाना
जन्म भले हो तंग गलियों में, नभ में उड़ान भर जाना
जो मेरा संस्कार बन गई, है वो ऋषि मुनियों की वाणी
अद्भुत अमूल्य जग की निधि,जिसने कुरीतियों से ठानी
ये दिव्य बयन केवल भारत में, सारा संसार इसे जाने
मानव की वाणी पाली, शांति संजोयी, जग पहचाने
जो मेरा संस्कार बन गई, निकली वो बात ह्रदय तल से
सच का संगी बन के रहना, भय बस प्रीत न करना बल से
सभी शक्तियां निहित स्वयं में, अपने अंतस में झांको
सभी कार्य कर सकते हो, कभी न अपना बल कम आंको
जो मेरा संस्कार बन गई, है परम्परा वो भारत की
भला दूसरों का चाहें, विचलित करती ध्वनि आरत की
जो सीखा,सद उपयोग करें विद्द्या ददाति विनियम हो
जियो और जीने दो का ही जग में सर्वत्र नियम हो
श्रीप्रकाश शुक्ल
No comments:
Post a Comment