तुझे भी चाह उजाले की
जो लालसा लालच में फंस यों ही भटक रह जाएगा
जिंदगी की राह अंधियारी रहेगी कुछ नज़र न आएगा
तुझे भी चाह उजाले की है दौलत और शोहरत के
मगर क्या जानता है, ये उजाला तिमिर भर फैलाएगा
है कौन तू, आया यहाँ क्यों, जो सुलगती प्यास है
मन शांत कर चिंतन किया तो सहज हल मिल जायेगा
चाह कोई भी रही हो, अब तक दिया है चैन किसको ?
यदि रह सका तू दूर इससे, अमन के पल पायेगा
सच्चा उजाला चाहता यदि, झाँक अपने आप में तू
दिल के कौने में छुपा रहबर तेरा दिख जाएगा
जिंदगी तूने बिता दी भटक कर "श्री" व्यर्थ में यों ,
धीरज बँधा तू जा किसी को ज्ञान पट खुल जाएगा
श्रीप्रकाश शुक्ल
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