घना जो अन्धकार हो
सुःख दुःख जिंदगी में समय समय की बात है
कभी अँधेरा मय दिवस है कभी अँधेरी रात है
ढल गया दिन ठीक से तो रात भी ढल जायेगी
कोई अँधेरी रात जीवन भर नहीं टिक पाएगी
नैराश्य मत जी में भरो हार कितनी बार हो
संकल्प ले डट कर लड़ो घना जो अन्धकार हो
नियति की मार से कौन बचकर रह सका
देव दानव ईश मानव सभी का साहस ढहा
प्राय प्रकृति कोप से ऐसा लगा सब ध्वस्त है
छागए बादल तिमिर के देख मानव त्रस्त है
पर न छोड़ी आस जिसने चाहे डगर दुश्वार हो
चिंता न की उसने तनिक घना जो अन्धकार हो
श्रीप्रकाश शुक्ल
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