Friday 14 November 2014

घना जो अन्धकार हो
 
 सुःख दुःख  जिंदगी में समय समय की बात  है 
 कभी अँधेरा  मय  दिवस है कभी अँधेरी  रात है 
 ढल गया  दिन ठीक से तो रात  भी ढल जायेगी 
 कोई अँधेरी रात  जीवन भर  नहीं  टिक पाएगी   
 नैराश्य मत जी में भरो  हार  कितनी  बार हो 
संकल्प ले  डट कर लड़ो घना जो अन्धकार हो 

 नियति  की मार से कौन बचकर रह  सका 
 देव दानव ईश  मानव सभी का साहस ढहा 
 प्राय प्रकृति कोप से ऐसा लगा सब ध्वस्त है 
 छागए  बादल तिमिर के देख मानव त्रस्त है 
 पर न छोड़ी आस जिसने चाहे डगर दुश्वार हो 
चिंता न की उसने तनिक घना जो अन्धकार हो

श्रीप्रकाश शुक्ल 

 

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