Sunday 18 September 2016

कहना होगा तुम हो पत्थर 

जिस धरती पर जन्म लिया ,जिसने तुमको पाला पोषा 
जिस समाज ने भूखे रहकर तुमको पोषक भोज्य परोसा 
जिस संस्थान ने सिंहासन पर तुम्हें बिठाया गोद उठाकर 
आज उन्हीं को तोड़ रहे हो कुँवर कन्हईया नाम लजाकर 

कैसे मुंह से निकल सका आज़ादी लेंगे अपनों से लड़कर  
इंसान नहीं असुरों से निकृष्ट हो कहना होगा तुम हो पत्थर 

पता नहीं क्या धर्म तुम्हारा कौन तुम्हारा परबरदिग़ार 
क्यों घृणा उसे मानवता से क्यों भाता उसको नरसंहार 
कहते हो जन्नत देगा यदि आतंकित कर, दो बलि हज़ार 
बिन कारण उद्देश्य बिना ही ,त्रसित कर रखा घर संसार 

कितने निबोध मारे हैं तुमने क्या भरा नहीं रब का खप्पर 
इंसान नहीं असुरों से निकृष्ट हो, कहना होगा तुम हो पत्थर 

सत्ता से  प्रतिकारों  में भी, रणनीति तुम्हारी दिल दहलाती 
बंकर में रख अबोध शिशुओं को रक्त पिपासा नहीं अघाती 
लगता है मन में ठान लिया क़ायम रक्खोगे इस प्रकरण को
जब तक न रुधिर से रंजित कर दो पूर्ण धरा के कण कण को 

दुनियाँ सारी देख रही, तुम किस फ़ितरत से रचते  मंजर 
इंसान नहीं असुरों से निकृष्ट हो कहना होगा तुम हो पत्थर

श्रीप्रकाश शुक्ल 

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