मेघों के कन्धों पर चढ़कर
मेघों के कन्धों पर चढ़कर
कितने ढीठ होगये पुष्कर
खेत जोहते बाट रात दिन
प्यासी धरा तड़पती तुम बिन
कितने ढीठ होगये पुष्कर
खेत जोहते बाट रात दिन
प्यासी धरा तड़पती तुम बिन
नदी सरोवर ताल तलइयां तुम बिन सब बेजान हो रहे
जीव जंतु पशु पक्षी सारे जीवन के अरमान खो रहे
जीव जंतु पशु पक्षी सारे जीवन के अरमान खो रहे
स्तुति कर तुम्हें बुलाते है हम
आरति कर तुम्हें रिझाते है हम
सुनी अनसुनी कर देते हो
धैर्य परीक्षा क्यों लेते हो
आरति कर तुम्हें रिझाते है हम
सुनी अनसुनी कर देते हो
धैर्य परीक्षा क्यों लेते हो
मनुहार हमारी सुनकर तुम आते हो, जीवन देते हो
पर अक्सर अनखाये से सुख कम, गम ज्यादा देते हो
पर अक्सर अनखाये से सुख कम, गम ज्यादा देते हो
बहुधा निर्ममता से तोड़ो मर्यादा
सुखदायक कम, विध्वंसक ज्यादा
कहर ढहाते, भय फैलाते
नगरी , गाँव बहा ले जाते
सुखदायक कम, विध्वंसक ज्यादा
कहर ढहाते, भय फैलाते
नगरी , गाँव बहा ले जाते
कोई वतन नहीं छुटता है, जहाँ तबाही न मचती हो
युक्तियाँ तितर वितर होती हैं शायद ही कोई बचती हो
संयोगी, बिरही मन में मादकता भर जाते हो
धरती की तपन बुझा, ठंडक पंहुचाते हो
रिमझिम की तालों पर मन मयूर नचा जाते हो
आओ तुम अवश्य आओ, प्यासेे मन की क्लांति हरो
वसुधा पर हरीतिमा बिखेर घर घर में धन धान्य भरो
श्रीप्रकाश शुक्ल
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