हर कविता के कुछ अक्षर
गीत लिखे हमने किसान के बारिश देख हुआ जो पागल
वनकर भूत जुटा बोने वो मक्का ,ज्वार ,बाजरा, चावल
इंद्र देव की भ्रूकुटि कुटिल थी रहा बरसता पानी झरझर
ज्वार,बाजरा तहस नहस थे सह न सके निग्रह ये दुष्कर
सागर की उठती लहरें लख नाविक का मन झूम गय़ा
सोचा थोड़ा गहरे जाऊँ फिर ऐसा समय मिलेगा क्या ?
जाल विछाया भीतर जाकर तब तक शशिधर रूठ गये
तूफान उठाया ऐसा भीषण किश्ती नाविक सब डूब गयेे
जीवन की हरेक डगर में मिलीं अनेकों अवघट राहें
रागों के स्वर संवर न पाये अस्फुट ही रहीं भावनाएं
जब भी लिखे गीत खुशियों के दुख के कांटे पड़े उभर
भूखे प्यासे दिखे बिलखते हर कविता के कुछ अक्षर
श्रीप्रकाश शुक्ल
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