किसके किसके नाम
इस लंबी डगर उम्र में संचित , जीवन की सच्चाई है
कितने साथी साथ चले कितनों ने नज़र चुरायी है
बचपन में जो मित्र मिले सब दिलोजान से मिलते थे
एक बार जब साथ हो लिए फिर पाला न बदलते थे
दुष्कर राह जवानी की थी जो भी टकराया बुरा भला
किसके किसके नाम गिनाऊँ स्वार्थ हेतु जिसने न छला
द्वेष, ईर्षा, अनर्थभाव ने अंतस छलनी कर रक्खा था
भावना प्रेम की पल न सकी, तम इतना भर रक्खा था
पहुँच गए चौथी सीढ़ी अब, देखें मुड़कर पीछे तो क्या देखें
फिक्र तजें चिड़िया जैसे पंख छोड़ती फड़काकर अपने डैने
जीवन घटता तिल तिल जलकर, पर इसका औचित्य नहीं
मन की कोई उम्र न होती, क्यों लेख हार का लिखें कहीं
श्रीप्रकाश शुक्ल
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