Saturday 26 July 2014

अपने अम्बर का छोर 

नारी, पुरुषों के जीवन में इक छायादार बृक्ष बन आयी  
जिसके  नीचे बैठ पुरुष ने अपनी सारी व्यथा भुलायी 

नारी ने सदा समर्पण को अपने जीवन का ध्येय चुना 
अपने अम्बर का छोर दिया चाही ना कभी भी प्रभुतायी  

पुरुष सोच कितनी निकृष्ट नारी अर्पण कमजोरी समझा 
विकृत प्रवित्ति के बसीभूत, दुष्कर्मों की मर्यादा ढायी   

घटते समाज के मूल्यों का विश्लेषण अति आवश्यक है 
अतिशय लगाव सुख साधन से लगता है उत्तरदायी ? 

हालात इस तरह बिगड़े "श्री" आकुंठन से सिर झुकता है 
लोक तंत्र सुदृढ़  है, फिर भी, कैसे ऐसी स्थिति आयी   

श्रीप्रकाश शुक्ल 




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