समय चक्र की गति से
जीवन क्रम के समय काल में मौसम के बदलते फेरे हैं
मिलती कभी धूप हंसती सी कभी बदलियों के घेरे हैं
अक्सर यही सोचते हम मेरे ही घर क्यों गाज गिरी
मेरे हाथों से तो कभी, सपने में भी चीटी न मरी
पर क्योंं नहीं समझ पाते समय चक्र की गति अबाध है
भूत भविष्य और वर्तमान में होना इसका निर्विबाद है
शायद यही मूल कारण है अनवरत चक्र चलता रहता है
और नियति की मार हर कोई, कर्मानुसार ही सहता है
पर जब समय चक्र की गति से तारतम्य बन जाता है
तो फिर मंजिल बने सुगम फल श्रम का मिल जाता है
वो विचार सब से बलशाली जिसका "समय"आ गया है
जिसने सुख दुःख हँस कर झेला जीने का अर्थ पा गया है
श्रीप्रकाश शुक्ल

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