Saturday 26 July 2014

अपने अम्बर का छोर

                  अनुस्मारक 

तू है एक वायु सैनिक, धूलिध्वज से लड़ना सीखा 
बाजों के पर लगा स्वयं में अम्बर में उड़ना सीखा  
यदि कोई दुस्साहस कर सीमा के तार तोडना चाहे 
तो प्रतिज्ञ, अविचल रह कर अपचार न होने देना  
अपने अम्बर का छोर न छूने देना । 

तू ने जटायु सम भर उड़ान सारे नभ की सीमा नापी  
तेरे हाथों निर्मित यानों से, दुश्मन की रूहें काँपी  
अपने वितान की सीमा का संरक्षण तेरा मुख्य धर्म है  
जब तक शेष सांस है तन में, अपकार न होने देना  
अपने अम्बर का छोर न छूने देना । 

कई बार दुश्मन ने तेरा बल पौरुष आकर आँका 
मुंह की खाकर लौट गया फिर न कभी बापस झाँका   
अब शक्ति हीन,साहस विहीन पस्त हुआ चुप बैठा है  
फिर भी एक सजग प्रहरी बन, छद्मबार न होने देना   
अपने अम्बर का छोर न छूने देना । 

तू ने सीखा है, नभ छूना है तो छूना है धवल कीर्ति से 
कोई थाह अजेय नहीं, यदि शौर्य सुशासित हो मति से  
हम कतई विश्वास ना करते, आँखें तरेर जग को देखें 
पर यदि कोई चिंउटी काटे, तो चैन न फिर लेने देना  
अपने अम्बर का छोर न छूने देना । 

श्रीप्रकाश शुक्ल 

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