जो जीवन में जगा कौन उससे बढ़कर है
जो जीवन में जगा, कौन उससे बढ़कर है
संघर्षों से भगा, नहीं कोई उससे घटकर है
कितनी भी विपदायें आयीं जिसने हार न मानी
अपनी पीड़ा सम ही जिसने सब की पीड़ा जानी
दर्द पराये लेने को जो रहा हमेशा तत्पर है
वो ही जीवन जिया वही सब से बढ़कर है
जीवन की सर्दी गर्मी में जो सम भाव रहा
कोई फेंके खींच या ठोंके पीठ न कोई परवा
लक्ष्य सदा ही रहा वही जो सब को हितकर है
जो जीवन में जगा कौन उससे बढ़कर है
लोलुपता का पाठ कभी ना जिसने सीखा
सद्पथ में स्वाद थपेड़ों का लगा कभी ना तीखा
संघर्षों के बीच रहा जो खड़ा सदा डटकर है
ऐसा कर्मठ इंसान जगत में सब से हटकर है
श्रीप्रकाश शुक्ल
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