Sunday 13 April 2014

कुछ भीगी तानें होली की 

मद मस्ती भर जातीं  हैं  कुछ भीगी तानें होली की
सहसा सुधि में आतीं हैं  बातें मधु भरी ठिठोली की                                       

होली में हुरआये फगुआ  घूमा करते हैं  गली गली 
क्या रंग विरंगे चहरे हैं क्या चाल गज़ब है टोली की 

मन में सद्भाव अपरमित है  प्रेम बांटता है  हर कोई
भरत सरीखा मिलन रहा क्या उपमा दें हमजोली की    

हँसते गाते मौज मनाते रंग गुलाल गालों पर मलते 
झर रहा प्यार चहरे से जब किस को परवा बोली की 

जब भी नहीं भाग ले पाता होली के हुड़दंगों में  "श्री "  
दिल में भर आतीं है यादें फागुन की सजी रंगोली की 

श्रीप्रकाश शुक्ल 

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