कुछ भीगी तानें होली की
मद मस्ती भर जातीं हैं कुछ भीगी तानें होली की
सहसा सुधि में आतीं हैं बातें मधु भरी ठिठोली की
होली में हुरआये फगुआ घूमा करते हैं गली गली
क्या रंग विरंगे चहरे हैं क्या चाल गज़ब है टोली की
मन में सद्भाव अपरमित है प्रेम बांटता है हर कोई
भरत सरीखा मिलन रहा क्या उपमा दें हमजोली की
हँसते गाते मौज मनाते रंग गुलाल गालों पर मलते
झर रहा प्यार चहरे से जब किस को परवा बोली की
जब भी नहीं भाग ले पाता होली के हुड़दंगों में "श्री "
दिल में भर आतीं है यादें फागुन की सजी रंगोली की
श्रीप्रकाश शुक्ल
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