Sunday 13 October 2013

वेदना पर चेतना की जीत होगी

जिन्दगी में सुख-दुःख के पल, सतत आते गुजरते 
नभ में दिखी लाली भी, देखे कभी तारे बिखरते   
उद्देश्य जीवन का समझ, समभाव से जिसने जिया  
नदिया दुखों की पार कर, आनंद जीवन का लिया 

जो मध्य पथ में रुक गया, कैसे कहूं था कर्मयोगी 
वेदना पर चेतना की जीत होगी 

दबकर व्यथा के भार से, विश्वास खो देता है मन 
आशायें बुझती सी दिखें, ध्वस्त दिखते सब सपन 
ऐसे समय पर शान्त्वना के शब्द लगते अति भले 
चेतना यदि जाग जाये, कम चुभन दुःख की खले 
         
नैराश्य में जो रंग भरे वो प्रीति की ही रीति होगी 
वेदना पे चेतना की जीत होगी 

रोना, रोना व्यथा का, दिखती न कोई समझदारी 
लोग करते हैं हंसी, लेता  ना  कोई  हिस्सेदारी
ये आपदायें क्षणिक तो, गहरायेंगी, डरपायेंगी 
पर चेतना हो बलवती, तो खुद व खुद मिट जायेंगी  

पग रहें गतिमय अगर, हर थाप पग की गीत होगी
वेदना पर चेतना की जीत होगी 

श्रीप्रकाश शुक्ल 





1 comment:

  1. आदरणीय महोदय जी नमस्ते... प्रत्येक नयी रचना अपने ब्लौग पर भी पोस्ट किया करें...
    आप की ये सुंदर रचना आने वाले सौमवार यानी 16/12/2013 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है... आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित है...
    सूचनार्थ।

    एक मंच[mailing list] के बारे में---

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    अभी तो इस मंच का अंकुर ही फुटा है, हमारा आप सब का प्रयास, प्रचार, हिंदी से स्नेह, हमारी शक्ति तथा आत्मविश्वास ही इसेमजबूति प्रदान करेगा।
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