Sunday 13 October 2013

पग में गति आ जाती  है छाले  छिलने से

पग में गति आ जाती है छाले  छिलने से 
निद्रित कुब्बत जग जाती है आहव मिलने से  

जीवन में संघर्ष कभी बेकार नहीं जाता है  
पत्थर कट जाता है, अविरल रस्सी चलने से 

सोना तपकर ही आभूषण में ढलता है 
सिंहपुत्र होता बलशाली केवल जंगल में पलने से 

कड़ी धूप में तपने से चहरे का रंग निखरता है  
हिना रंग भर लाती है, घुटकर दलने से 
 
अवरोधों से लड़कर ही जीवन का सुख मिलता है 
दाने अनाज के खिल उठते हैं,जलने  से 
 
कितना दुष्कर होता है एकाकी जीवनयापन  " श्री "
आशाएं बुझी पनपतीं है, साथी मिलने से 

श्रीप्रकाश शुक्ल 

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