Friday, 29 April 2022
भीख किनारों की
जीवन इस संसार मध्य ऐसे है, जैसे नौका सागर में हो
स्वयं खेहना पड़ता है चाहे कितनी भी बड़ी बिरादर हो
नौका बिहार सुख देता है जब तक लहरें शान्त रहें विपदाओं के तूफानों में भी, गति जब नहीं असंतुलित हो
मंजिल तक आते आते जीवन की शाम आ पहुंचतीं है
नौका हिलोर लेने लगती जब भोतिक साधन परिसीमित हो
ऐसे में भीख किनारोंं की रखना, क्या अपनों से न्यायोचित है
जब वो खुद भी बीचधार में हों और तूफानों की आशंका हो
अनुभवी मनीषी बतलाते है "श्री" विश्वास स्वयं पर अति उत्तम है
कौई तो राह निकल आती है यदि मनसूबों में ढ़ील न हो।
श्रीप्रकाश शुक्ल
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