Friday, 29 April 2022
द्वितीय प्रविष्टि
गाऊं कैसा गीत
गांऊ कैसा गीत कि जिससे ठंड़ा खून उबाल ले आये
जागे सोयी पड़ी अस्मिता, हतप्रभ प्राणी ऊर्जा पाये
आज नगर में कोलाहल है गिद्धों के भारी जमघट हैं
भूखी जनता के शोषण को जो बैठे हैं ताक लगाये
अनविज्ञता कुये के मेढ़क सी, जो सुनती, सही मानती है
युक्ति नहीं है कोई जो, हानि लाभ का अन्तर समझाये
छीन झपट खाने के आदी वक्र हांकते ड़ीगें अपनी
जिससे उनके राज भोज्य, शश समूह स्वयं भिजवाये
बिगड़े हालात देखकर "श्री" मन आज सशंकित है
कहीं सुशासन शुभकर साधन आसमान नीचे न लाये
श्रीप्रकाश शुक्ल
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