Thursday 7 April 2016

समा गया  तुम में 

जिस दिन तुमने घूंघट पट से देखा सहसा उसे पलटकर  
समा गया तुम में था उसका सारा जहाँ उसी पल घुल कर 

सागर जैसी आखों की तह तक तो पहुंचना सहज न था  
पर चितवन की ख़ूँ-ख़्वारी से कैसे लड़ सकता था डटकर 

सोचा न कभी, पहली प्रतीति ही ऐसी रंगत ले आएगी 
असहज रहेगा जीवन यापन, बीतेंगी रातें तारे  गिनकर 

पता नहीं केवल चितवन थी या फिर संग में इशारात थे 
पल में होश गवां बैठा जो  झलक एक उस छवि की पाकर 

सम्मोहन शक्ति नारी की, चपला से चंचल कही गयी है    
एक चोट जो खा लेता " श्री " जीता है वो तड़प तड़प कर 

श्रीप्रकाश शक्ल 

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