Thursday 7 April 2016

इस पनघट पर तो

भारत  है  इक  मात्र  देश सरिताएँ जहां पाप क्षरतीं हैं  
इनके घाटों पर भक्तों  की  निष्ठाएँ  नर्तन करतीं हैं  

घाट सभी पूजास्थल हैं ,अतुल सौम्यता के अनुरूपक  
जल में बिंबित रवि किरणें, मन की अस्थिरता हरतीं हैं  

आस पास की नगर मानुषीं, जब इन घाटों पर आतीं हैं 
तिरछी अटकीं मटकियां कमर पर छटा दिव्य सी भरतीं हैं 

लगता  है  इस पनघट पर तो  साक्षात  अप्सराएं  उतरीं हैं 
जिनकी  मधुर  हंसी में, नव पुष्पित पंखुरियां  झरतीं हैं 

ये  रुचिर घाट  भारत के "श्री "भारत  की  जीवन  रेखा  हैं 
इन पर निर्भर गतिविधियाँ ही असली कथा बयां करतीं हैं  

श्रीप्रकाश शुक्ल 

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