Monday 16 January 2012

तेल ना तेल की धार, राधा क्यों नाची ?



ना था तेल, न धार तेल की, फिर भी राधा क्यों नाची
  राधा के मन बसो कन्हैया, प्रीति रही अविचल साँची
     राधा जो वृषभानु दुलारी, प्रिय उन्मत्ता, अनुरागी
       कान्हा की छवि धार ह्रदय में, चाह मिलन की जागी

थिरक उठे पग वंसी धुन सुन, अनुपम रास रचायो
    जग की सारी निधि ठुकराई, कृष्ण प्रेम रस भायो
        संग में नाचे ग्वाल बाल सब, वृन्दावन हरषायो
         दिव्य अलौकिक प्रेम अमिय अस, अनुपम सुख दरशायो


राधेय प्रेम उत्कट अकाम, बाध्य करे राधा मन को
   मन मयूर, होकर विभोर, नाच उठे आराध्य मनन को
      भाव समर्पण ह्रदय समाहित, भक्ति प्रेम की कविता सी
      अद्भुत प्रेम पुलक सहरन, पलकों में बहती सरिता सी

राधा नाची, हो बसीभूत, अपने प्रिय के शाश्वत रंग में
   जो नचा रहा सारी जगती को, जग हिताय अपने ढंग में
      राधा कृष्ण प्रेम की महिमा, परम दिव्यता भरती मन में
         निष्काम प्रेम की ऐसी गरिमा, कहीं नहीं परिलक्षित जग मे

बदल गयी अब रीति जगत की, राधा अब भी नाचें
    पर कितना भंडार, किधर को धार तेल की, जाचें
     , दुराचार का पहन घाघरा, लोभ की माला डाले
        अपना नाच नचायें सब को, सत्ता हाथ संभाले


श्रीप्रकाश शुक्ल

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