Monday 16 January 2012



घर में उजाला सी लगें ये बेटियाँ


प्यार भर अपनत्व से, सींच सम्बन्ध सभी,
     हर पत्थरों के मकाँ को, घर बनाती बेटियां
       बादल उदासी के छिटक, आ घिरें जब भी कभी,
          खिलखिलाती धूप सी, जाती विखर ये बेटियां
              घर में उजाला-सी लगें ये बेटियाँ


घर पिता का हो, या कि हो ससुराल का,
    दोनों कुल की बान का बीड़ा उठाती बेटियाँ
       त्याग की प्रतिमूर्ति सी, सद्भाव का संकल्प ले,
            सर्वस्व अपना दांव पर हंस हंस लगाती बेटियाँ
               घर में उजाला - सी लगें ये बेटियाँ


क्षेत्र कोई भी अछूता, अब रहा इनसे नहीं,
   निज कल्पना साकार कर, अम्बर खगारें बेटियाँ
      प्रश्न हो जब देश की रक्षा सुरक्षा अस्मिता का,
           बन कपाली युद्ध में, खप्पर संवारें बेटियां
               घर में उजाला सी लगें ये बेटियाँ

शौर्य सुषुमा से सजीं ,शांत सुरसरि की लहर,
   देश की बहुमूल्य - सी, जागीर हैं ये बेटियां
      देश उद्बोधित समूचा, जानते हैं हम सभी,
         देश की तस्वीर और तकदीर हैं ये बेटियां
              घर में उजाला -सी लगें ये बेटियाँ


श्रीप्रकाश शुक्ल

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