Thursday 24 June 2010

२० जून को अमेरिका और लन्दन में पितृ दिवस था इस अवसर पर दो छोटी छोटी रचनाएँ लिखीं हैं एक पुत्र के नाम , दूसरी पिता श्री की स्मृति में आईये पढ़िए दोनों ही :-
पुत्र के नाम : पिता दिवस पर

व्यक्ति ही, शत्रु है या मित्र है,
              स्वयं का, निज धर्म का
भूलकर भी मत गिराना,
             मान अपनी अस्मिता का, कर्म का
कार्य कुछ ऐसे चुनो,
            उच्चत्व दें, उद्देश्य को
सम्पूर्ण जग हित में रहें,
           गर्वित करें निज देश को

जब कभी द्विविधा उठे,
           क्या गलत है क्या सही ?
दो समर्थन, सत्य को ही,
          अंत में विजयी वही
अर्थ और पद के प्रलोभन,
           मन न ललचायें कभी
हो मनोवल सुदृढ़ इतना
          पग न डिग पायें कभी


पथ सफलता का कभी,
         कोई सुगम होता नहीं
लक्ष्य पा जाता वही,
        जो धैर्य को खोता नहीं
बुद्धिबल विकसित करो,
        नित नया संकल्प लेकर
साथ ले सबको चलो,
        अहम् की आहूति देकर


मंत्र है एक और जो,
       सत्य, पूर्ण, अकाट्य है
हो रहा, जो कुछ जगत में,
      वह किसी का नाट्य है 
करना न कोई तर्क, उसकी,
      सत्यता और शक्ति पर
रखना अटल विश्वास,
     उसकी सहृदयता, निज भक्ति पर

श्रीप्रकाश शुक्ल
२० जून २०१०
लन्दन


पिता की स्मृति में : पितृ दिवस पर

पितृ दिवस है आज किसी ने
              भेजी स्वस्थ कामनाएं
याद आपकी फिर घिर आयी
             जैसे जल भर सुखद घटाएं
बातें जो समझी सीखी थी
              सब की सब जीवंत रहीं हैं
दुर्भाग्यपूर्ण, दुसाध्य क्षणों में
             संबल बन सामंत रहीं है


कहा आपने था, अच्छा है
           श्रेणी पाना अतिशय विशिष्ट
उससे भी आवश्यक है
          आचरण रहे निर्मल सुशिष्ट
पाठ दुखों का पढना होगा
         यदि, संवेदना संजोना है
आहत हो तन मन, फिर भी
         हतोत्साह न होना है

कार्य कठिन हो कितना भी
        पर जीवन नहीं लिया करता
जो घुस जाते साहस कर
       उनको सम्मान दिया करता
जो करना है अभी करो
        इससे उत्कृष्ट उसूल नहीं
जो कार्य स्थगित करते हैं
       उससे कोई बढ़कर भूल नहीं

भाव पूर्ण बातें अनेक
       जो आप बताया करते थे
मैं सुनी अनसुनी करदूं
      पर आप सुनाया करते थे
आज वही सब कुछ संभाल
      लिख भेजी है सीख राज की
पीढ़ी दर पीढी अर्पित हो
     पाथेय बनें नूतन समाज की


श्रीप्रकाश शुक्ल
२० जून २०१०
लन्दन





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