Friday 25 June 2010

  जून माह के उत्तरार्ध में दिए जाने के लिए, समस्या पूर्ती का वाक्याँश था " आंख का पानी ". यह वाक्याँश इतना प्रयोग हुआ है जिसकी गिनती नहीं की जा सकती .इसको अनेको अर्थों में भी प्रयोग किया गया है अतः ऐसा  कठिन हो रहा था कि इस वाक्याँश के साथ कैसे नई रचना की जाये . फिर जो कुछ भी ह्रदय में आया लिख दिया .हो सकता है कि कुछ प्रबुद्ध जन कथ्य से पूर्ण रूप से सहमत न हों :  रचना  है  

आँख का पानी

आगयी आज सहसा सुधियों में,
         अपनी भू की जीवन्त कहानी
हर युग में भड़के प्रलय ज्वाल,
         जब जब मरा आँख का पानी
यद्यपि होता अशोभनीय,
         पर पुरुषों से प्रणय निवेदन
पर क्या मर्यादा संगत है
        अवला नारी का अंग विच्छेदन


माया नगरी था द्रुपद महल
       कौतुक, श्रमिक, कर्मकारों का
अंधों के अंधे ही होते
       क्या अर्थ था इन उद्गारों का
धर्मराज थे सत्य मूर्ति,
      कर न सके क्यों,सत्य कथन
पांडु पौत्र इतिहास बदलते,
      असमय होते जो न हनन


यही श्रृंखला आज चल रही,
       चोर लुटेरे, प्रासादों में
सीधे सच्चे, निर्धन, विपन्न,
       घिरे हुए अवसादों में
सत्ता के नायक मूक, बधिर
      या सूख रहा आँखों का पानी
नहीं समझते दुहराएगी
      कल फिर, वो दुःख भरी कहानी

श्रीप्रकाश शुक्ल
२१ जून २०१०

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