Tuesday 12 February 2013

तेरी वीणा की झंकारें 

कब से नहीं सुनी  माँ , तेरी  वीणा की झनकारें 
भक्ति भाव से पूरित दृग माँ,इकटक तुझे निहारें

बचपन में निशदिन ही  तू माँ, साथ हमारे रहती थी
सा माँ पातु  सरस्वति ,जिभ्या रोज सकारे कहती थी
अध्ययन के पहले पहले, गुणगान  तुम्हारा करते थे
सद विचार, शुभ संस्कार  नित चित वृति में भरते थे

कितनी करुणा रहित हुयी माँ, सुनती नहीं पुकारें
मन  व्याकुल  सुनने  को  तेरी वीणा की झनकारें

हम बच्चे हैं अज्ञानी हैं , भिक्षुक ममतामयी  दृष्टि के
युगों युगों  से हम आकांक्षी विद्या ज्ञान कला वृष्टि के  
शिशु बालक अरु प्रौढ़ तरुण हम सब ही तेरे उपासक हैं
तेरी वीणा के मधुरिम स्वर अज्ञान तिमिर के नाशक हैं

माँ  तेरे पद रज के कण, अनगिन शठ, मूढ़ उबारें
हैं  मृदु  शान्ति प्रदायिनि, तेरी  वीणा की झनकारें


श्रीप्रकाश शुक्ल 

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