Wednesday 14 November 2012


दीप के पर्व पर जब जलें- दीप, ऐसे जलें 

दीप के पर्व पर जब जलें- दीप, ऐसे जलें 
कि हो अड़िग सकल्प,निष्ठा, कलुष तम से जूझ पायें
इरादे, कर गुजरने के कभी दिल में पलें, ऐसे पलें
कि हर साँस की उच्छवास से, अन्याय के दिल काँप जायें 

दीप के पर्व पर जब जलें -दीप, ऐसे जलें 
कि रश्मियाँ उनकी छिटक सारी धरा को जगमगायें  
प्रीति प्रादुर्भाव हो, मन में फलें सुविचार, ऐसे फलें  
शमन हों आक्रोशलिप्सा, छिन्न हों कटु भावनायें  
दीप देता है संदेशा जल सको, तो यों जलो  
निज स्वार्थ, बाती बन जले, परमार्थ घृत बन, लौ बढायें 
और ढलना हो कभी फौलाद में, तो यों ढलो 
लाखों बबंडर सर पे टूटें, तो भी सपने बुझ न  पायें  

दीप पाता है प्रतिष्ठा कर्म से, न कि माप से 
क्यों न हम अनुकरण कर, अस्तित्व की बाजी लगायें 
और जो झुलसे, जले हैं, दीनता के ताप से 
आस की  दे इक किरण, अभिकाम जीने की जगायें  

  श्रीप्रकाश शुक्ल 

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