Tuesday 6 November 2012


विजयदशमी विजय पर्व है ,विजयी कौन हुआ है लेकिन

विजयदशमी विजय पर्व है ,विजयी कौन हुआ है लेकिन
  विजय सत्य की हुयी अंततः, साक्षी काल दिवस अनगिन  
     सच है समय समय भारत में, आसुरी प्रवितियाँ उमड़ पडीं 
         तभी महा मानव ने उठकर, कर निदान, नीतियाँ गढ़ीं   
लेकिन तत्व कलुषता के उग, रहे पनपते रक्तबीज से
   मानवता कराह उट्ठी, हो व्यथित, रोज की असह खीज से 
      आज प्रताड़ित, घने धुएँ में, जीते हैं नित मर मर कर
         क्योंकि सत्ता के  साये में, सुख की छांह न पायी क्षण भर

मनमोहन की बंशी अब, बजती नहीं सुनिश्चित सुर में 
   जिसकी अशुद्धि प्रतिध्वनि उठकर, गूँज रहीं सांसद उर में 
      मति भ्रमित, सभी नायक दिखते, निर्णय होते सभी अहितकर 
          या फिर लूट रहे जनगण को, जानबूझ कर ,बल छलकर     


मौन व्यथा जग गयी आज, इक जलधि ज्वार सी 
    हारी बाज़ी पा लेने की होड़ बढ़ी बढवा बयार सी 
       तरुणाई की आँखों में सुख सपनो के अंकुर दिखते
         परिवर्तित 
होगी शीघ्र व्यवस्था,नहीं देर अब दिन फिरते  

श्रीप्रकाश शुक्ल 

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