गुलमुहर ने बाँह में भर
गुलमुहर ने बाँह में भर, हँस,पथिक को यूं पुकारा
बैठो यहाँ विश्राम करलो, भूल जाओ क्षोभ सारा
झुलसा रहा है गर्म मौसम,लू तपिश भीषण घनी हैं
झुलसा रहा है गर्म मौसम,लू तपिश भीषण घनी हैं
और बढती प्यास से, इन्सान की साँसें तनी हैं
क्यों व्यथित. सोचो तनिक और मन की गाँठ खोलो
सुन रहा हूँ मैं, झिझक बिन, आज अपनी बात बोलो
यह महल अट्टालिकाएं सामने हंसतीं खडी जो
तेरे श्रम की ही बदौलत आज हैं खुशहाल वो
क्या हुआ जो आज तेरे पास कोई घर नहीं है
चैन से सोता तो है दिल में कोई भी डर नहीं है
दूसरों की डगर में खुशियाँ हजारों जो भरें
भाग्यशाली कौन उन सा काम जो परहित करें
देख तू मुझको, तपन से सारे पत्ते झर गए
पर रंग लाया स्वेद बहना फूल आँचल भर गए
भेजती है प्रकृति भी मुझको सदा ऐसे समय जब
हैं दहकती आग से तपते झुलसते जीव सब
तुझको यहाँ भेजा गया, ऐसी नियति देकर धरा पर
संबल बनो असहाय का, हो परस्थिति जब भी दूभर
श्रीप्रकाश शुक्ल
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